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- The Dream Of A Full Subdivision And Degree College Will Still Remain Incomplete, The Issue; The Voters Are Upset About The Problem Of Drinking Water And Health Facilities
फतुहा4 मिनट पहले
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- फतुहा अब इंडस्ट्रियल हब बन चुका है। लेकिन, फिलवक्त हर तरफ चर्चा चुनाव और जातीय समीकरण की ही हो रही है
(आलोक कुमार) दो पग में ही पूरी धरती, आसमान व पाताल नाप लेने वाले भगवान बामन की धरती फतुहा में चुनावी सरगर्मी तेज है। पटना से सटा फतुहा अब इंडस्ट्रियल हब बन चुका है। लेकिन, फिलवक्त हर तरफ चर्चा चुनाव और जातीय समीकरण की ही हो रही है।
दो बार से लगातार जीत रहे राजद के रामानंद यादव इस बार हैट्रिक लगाने के इरादे से मैदान में हैं। लेकिन, इस बार उनके लिए जीत की राह आसान नहीं है। इस बार यह सीट भाजपा के पाले में गई है। हालांकि अबतक भाजपा ने उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।
बावजूद इसके क्षेत्र में चर्चा यही है कि पाला बदल कर लोजपा से भाजपा में गए इंजीनियर सत्येंद्र सिंह को ही टिकट मिलने की प्रबल संभावना है। पिछली बार राजद और जदयू के बीच गठबंधन था, इस बार जदयू भाजपा के साथ है। ऐसे में जातीय समीकरण उलझ गया है।
वैसे लोजपा इस सीट को परंपरागत सीट मानती है, लेकिन लोजपा टिकट किसे देगी, यह तय नहीं है। अगर लोजपा मैदान में उतरी तो यहां मुकाबला त्रिकोणात्मक हो सकता है। फिलहाल इलाके के लोग विकास को लेकर वर्तमान विधायक पर सवाल उठा रहे हैं। खासतौर से शहरी क्षेत्र के मतदाता खासे नाराज हैं। शहर के रेलवे गुमटी महारानी चौक के चाय दुकान पर चुनावी चर्चा जोरों पर है। बरुणा गांव के बुजुर्ग कपिल प्रसाद कहते हैं कि राजधानी से सटे रहने के बावजूद फतुहा का जितना विकास होना चाहिए, नहीं हो पाया। 1975 में जब धर्मवीर प्रसाद विधायक थे, तो उन्होंने औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की थी।
उस समय लोगों को लगा था कि फतुहा एक टाउनशिप के रूप में विकसित होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके अलावा जाम की समस्या रोज की कहानी है। दाह संस्कार के लिए मुक्ति धाम का प्रस्ताव भी ठंडे बस्ते में है।
न्यायिक कार्यों के लिए जाना पड़ता है 22 किमी दूर
फतुहा को पूर्ण अनुमंडल नहीं बनाए जाने का मुद्दा इस बार मुख्य चुनावी मुद्दा है। तत्कालीन राजद सरकार ने फतुहा को पूर्ण अनुमंडल बनाने की घोषणा की थी। इस मुद्दे को चुनावी समर में खूब भुनाया गया, लेकिन हुआ कुछ नहीं। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फतुहा की जनता का भरोसा जीतने के लिए फतुहा को पुलिस अनुमंडल बना दिया, लेकिन लोगों की मांग फतुहा को पूर्ण अनुमंडल बनाने की है। अनुमंडल नहीं बनने से लोगों को न्यायिक कार्यों के लिए 22 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।
यादव, कुर्मी और राजपूत वोटरों का है बोलबाला
फतुहा में सबसे अधिक करीब 80 हजार यादव और उसके बाद राजपूत करीब 55 हजार हैं। यही वजह है कि जब से यह सीट सामान्य हुई है, यादव व राजपूत जाति के प्रत्याशियों के बीच ही आमने-सामने की टक्कर होती रही है। पिछले चुनाव में जदयू से तालमेल रहने के कारण यादवों के साथ कुर्मी वोटरों का फायदा राजद को मिला था।
लेकिन, इस बार जदयू भाजपा के साथ एनडीए का हिस्सा है, ऐसे में वर्तमान विधायक की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। फतुहा विधानसभा सीट 1951 में ही बन गई थी। इसके बाद कांग्रेस ने इस पर कब्जा जमाया, लेकिन जल्द ही जनसंघ और लोकदल ने इस पर वर्चस्व कायम करने की कोशिश की। पिछले दो दशक से राजद और जदयू के पाले में यह सीट रही है।
2015 के चुनाव में राजद के रामानंद यादव ने लगभग 30 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी। फतुहा विधानसभा में पटना सदर के जल्ला क्षेत्र, संपतचक प्रखंड के कई क्षेत्र और फतुहा प्रखंड के सभी पंचायत शामिल हैं। यह क्षेत्र फतुहा के शहरी क्षेत्र से होते हुए पटना के राम कृष्ण नगर तक जाती है। किसी प्रत्याशी की हार या जीत में क्षत्रिय समाज और चंद्रवंशी समाज की अहम भूमिका रही है।
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