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- Why Are Smaller Parties Breaking Away From Alliances In Bihar, Is There A Siege Against JDU In NDA!
पटना5 मिनट पहलेलेखक: बृजम पांडेय
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लोजपा के चिराग पासवान, वीआईपी के मुकेश सहनी और हम के जीतन राम मांझी।
- उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी और जीतन राम मांझी ने महागठबंधन छोड़ा, लोजपा ने अलग लड़ने का फैसला लिया
- क्षेत्रीय दल अपने से छोटे दलों को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते, उनको साइडलाइन किया जाता है
वीआईपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी बड़े बेआबरू होकर महागठबंधन से निकल गए। लेकिन अपने पीछे कई सवाल छोड़ गए। सवाल यह कि आखिर बिहार के दो प्रमुख गठबंधन छोटे दलों को अपने से अलग क्यों कर रहे हैं? क्या वजह है कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों वाले इन गठबंधनों में जो छोटी पार्टियां हैं, जो नई पार्टियां हैं वह अलग होती जा रही हैं। इसके पीछे की राजनीतिक मंशा स्पष्ट है कि क्षेत्रीय दल अपने से छोटे दलों को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते। इसलिए उन सबको साइड लाइन किया गया।
बात महागठबंधन से शुरू करते हैं। विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले महागठबंधन में पांच दल के अलावा लेफ्ट पार्टियां भी थीं। राजद, कांग्रेस, रालोसपा, हम, लेफ्ट और वीआईपी। लेफ्ट को छोड़ सभी ने मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा। पूरे महागठबंधन को 40 सीटों में मात्र एक सीट पर सफलता मिली। वह भी कांग्रेस के खाते से। अब विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई। इसमें सीट बंटवारे को लेकर जिस तरह से खींचतान मची, उसमें पहले जीतन राम मांझी अलग हो गए और एनडीए से जा मिले। कुछ दिनों के बाद उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा अलग हो गई। उन्होंने अपना अलग गठबंधन बीएसपी के साथ बना लिया। जब सीटों के आखिरी बंटवारे का वक्त आया तो मुकेश सहनी ने महागठबंधन छोड़ दिया। फिर आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों ने सीटों का बंटवारा कर लिया।
अब बात एनडीए की। बिहार में एनडीए में प्रमुख रूप से तीन दल हैं। तीनों ने लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ा। बीजेपी और जेडीयू ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा। बाकी 6 सीटों पर लोजपा ने चुनाव लड़ा। बीजेपी ने लोकसभा की अपनी 17 सीटों पर जीत हासिल की। एलजेपी ने 6 सीटों पर जीत हासिल की। जेडीयू ने 17 में से 16 सीटों पर जीत हासिल की। लगा ऐसा कि यह जो गठबंधन है काफी मजबूत है। लेकिन विधानसभा चुनाव आते-आते इस गठबंधन को भी नजर लग गई। लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का नारा देकर बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोला । बिहार में एनडीए टूट और बिखर गया। लोजपा ने अलग राह ले ली। लोजपा प्रमुख चिराग पासवान के मुताबिक भाजपा से उनका गठबंधन तो रहेगा, लेकिन बिहार में जदयू से उनका कोई गठबंधन नहीं रहेगा। वह अलग चुनाव लड़ेंगे और उन्होंने घोषणा की कि वह 143 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे बताते हैं बिहार के दोनों प्रमुख गठबंधनों में राष्ट्रीय दल और क्षेत्रीय दल मौजूद हैं। महागठबंधन की बात करें तो उसमें कांग्रेस राष्ट्रीय दल है और एनडीए की बात करें तो इसमें भाजपा राष्ट्रीय दल है। ऐसे में इन दोनों गठबंधनों में क्षेत्रीय दलों की खूब चलती है। एनडीए में जेडीयू के पास सत्ता है तो वह अपनी हनक रखते हैं। वहीं महागठबंधन में आरजेडी का सामाजिक समीकरण है तो वह उसमें उसी की चलती है। इसी का फायदा उठाकर दोनों गठबंधनों में जो छोटे क्षेत्रीय दल हैं उनको साइडलाइन किया जाता है। इस बार यह साफ तौर पर दिखा।
अरुण पांडे आगे बताते हैं कि लोजपा की रणनीति में नीतीश कुमार टारगेट हैं। चिराग पासवान ने एनडीए में रहकर जिस तरह से सरकार के सात निश्चय पर सवाल उठाया, उसे भ्रष्टाचार का पिटारा कहा, उससे साफ लगता है कि लोजपा का निशाना नीतीश कुमार हैं। अरुण पांडे कहते हैं कि ये कोई प्री इलेक्शन समझौता के लिए नहीं किया जा रहा है। जो पूरा घटनाक्रम है वह पोस्ट पोल के बाद का समझौता है। चुनाव के बाद राजनीतिक समीकरण अलग बन सकते हैं। उन्होंने बताया कि विधानसभा चुनाव में लोजपा के पास खोने को कुछ नहीं है। बिहार में बिहार के एनडीए में लोजपा नहीं है। झारखंड में रघुवर सरकार के खिलाफ एलजेपी और जेडीयू ने चुनाव लड़ा था। फिर भी यह दोनों पार्टियां एनडीए में थीं। आने वाले वक्त में कुछ ऐसा ही होने वाला है ।
कुछ वरिष्ठ पत्रकार यह भी कह रहे हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव के पूरे खेल में बीजेपी ने बड़ा दांव खेला है। लोजपा के अलग हो जाने के बाद नीतीश कुमार को लोजपा से भी लड़ना पड़ेगा। लोजपा बीजेपी की बी टीम होगी। वही उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी, पप्पू यादव जैसे नेता भी बीजेपी की मदद चुनाव के बाद कर सकते हैं। ऐसे में नीतीश कुमार को आरजेडी से तो चुनाव लड़ना ही है, साथ में बीजेपी और बीजेपी की बी टीम से भी चुनाव लड़ना होगा।
लोजपा की चाल और भाजपा की चुप्पी
लोजपा ने कहा है कि उसकी सरकार बनी तो वे नीतीश कुमार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना सात निश्चय योजना की जांच कराएगी। सच यह भी कि लोजपा ने जब नीतीश सरकार पर वार किया तो भाजपा बचाव में नहीं आई। भाजपा की भूमिका यहीं से संदेह में आने लगती है। लोजपा जब यह कहती है कि चुनाव जीतने के बाद लोजपा के सारे विधायक भाजपा को समर्थन देंगे तो इससे भाजपा की राजनीति और स्पष्ट हो जाती है। लोजपा 143 सीटों पर लड़ती है तो ओवरऑल फायदा भाजपा को ही होगा। लोजपा ने अपनी दरियादिली दिखाने के बदले भाजपा से कैसा समझौता किया है यह समय पर सामने आएगा। चिराग को भाजपा मुख्यमंत्री का पद देगी या उपमुख्यमंत्री का अभी कहना मुश्किल है। लेकिन भाजपा इस दरियादिली का बदला तो चुकाएगी जरूर। दूसरी बड़ी बात यह कि जेडीयू ने एक समय भाजपा के साथ ऐसा सलूक किया था कि एक दिन में भाजपा कोटे के सारे मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था। भोज का न्योता वापस ले लिया था। नीतीश कुमार ने, नरेन्द्र मोदी के साथ हाथ उठाया हुआ फोटो छपने पर बवाल कर दिया था। नीतीश कुमार नहीं चाहते थे कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद का चेहरे बने। यह और बात है कि बाद में नीतीश कुमार, नरेन्द्र मोदी को ही प्रधानमंत्री पद का सबसे काबिल चेहरा मानने लगे।
इस चुनाव में सबसे दिलचस्प यह होगा कि जहां कहीं भी लोजपा, जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारेगी, वहां लोगों में झोपड़ी में कमल भी दिखेगा। वह इसलिए कि लोजपा कह चुकी है कि चुनाव के बाद लोजपा के विधायक भाजपा को समर्थन देंगे। इस तरह भाजपा ने ठीक-ठाक सीटें जीतीं तो समर्थन सहित विधायक बढ़ जाएंगे। बिहार में जेडीयू के आगे भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आ जाएगी।
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